विरजन ने पूछा-तुम मुझसे क्यों रुष्ट हो? मैंने कोई अपराध किया है? प्रताप-न जाने क्यों अब तुम्हें देखता हूँ, तो जी चाहता है कि कहीं चला जाऊँ। विरजन-क्या तुमको मेरी तनिक भी मोह नहीं लगती? मैं विन-भर रोया करती हूँ। तुम्हें मुझ पर दया नहीं आती? तुम मुझसे बोलते तक नहीं। बतलाओ मैंने तुम्हें क्या कहा जो तुम रूठ गये? प्रताप-मैं तुमसे रूठा थोड़े ही हूँ। विरजन तो मुझसे बोलते क्यों नहीं? प्रताप मैं चाहता हूँ कि तुम्हें भूल जाऊँ। तुम धनवान हो, तुम्हारे माता-पिता धनी हैं, मैं अनाथ हूँ। मेरा तुम्हारा क्या साथ? - इसी पुस्तक से।
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